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समाज में अपने गुरु व् किसी को सम्मान देना बड़ी बात राकेश कुमार सेंट जोजेफ स्कूल


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वार्षिकोत्सव में सेंट जोजेफ के नन्हे मुन्ने बच्चों ने सांस्कृतिक व् देश भक्ति गीत प्रस्तुत कर मोहा मन धूमधाम से मनाया गया सेंट जोजेफ का वार्षिक उत्सव

वार्षिक उत्सव में बी जे पी  के मण्डल अध्यक्ष राकेश कुमार सेंट जोजेफ स्कूल में बच्चों को बताया सम्मान देने का महत्व
उन्होंने कहा सम्मान से प्रत्येक व्यक्ति को एक प्रकार की आध्यात्मिक तृप्ति मिलती है, उसे प्रत्येक व्यक्ति चाहता है। आपको भी सम्मान मिले इसके लिये इस आदि सभ्यता की परम्परा को जीवित रखना चाहिये। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आधुनिक शिक्षा-धारी व्यक्तियों में अहंकार इतना बढ़ रहा है कि बड़ों को सम्मान देना वे अनावश्यक समझते हैं। इसे वे छोटापन मानते हैं। कई व्यक्ति तो माता-पिता को मारने पीटने और उन पर रौब दिखाने में ही अपना बड़प्पन मानते हैं। यह हमारी संस्कृति के नाम पर कलंक ही है कि लोग अपने जन्म-दाताओं को त्रास दें। गुरु-परम्परा तो प्रायः समाप्त-सी होती जा रही है और इनके प्रति उनकी भावनायें भी बिलकुल ओछी हो गई हैं। सामयिक अनुशासन को बनाये रखने के लिये और आत्म सम्मान प्राप्त करने का भी यही मार्ग है कि हम भी अपनों से बड़ों के साथ वैसा ही व्यवहार करें। दार्शनिक सुकरात ने कहा है—”अच्छा सम्मान पाने का मार्ग यह है कि तुम भी सम्मान करो। तुम जैसा प्रतीत होने की कामना करते हो वैसा बनने का प्रयास करो।”

बड़ों के प्रति सम्मान तथा अनुशासन होना पारिवारिक संगठन का मूल आधार है। यह संगठन प्रेम मूलक होता है। वहाँ पारस्परिक आत्मीयता होती है। एक सदस्य दूसरे सदस्य का ध्यान रखता है और अधिकार के स्थान पर कर्तव्य की प्रधानता रहती है। इस स्थिति में सुख और अमन के लिये बाह्य साधनों पर नितान्त अवलम्बित नहीं होना पड़ता। लोगों में पारस्परिक स्नेह और आत्मीयता हो तो कोई कारण नहीं कि घरेलू वातावरण कष्टप्रद लगे। पारिवारिक अनुशासन सुख और व्यवस्था का मेरुदंड है इसे अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये यह आवश्यक है कि लोगों में बड़ों के प्रति आदर का भाव बना रहे। ऐसा होने से उस वातावरण में श्रद्धा और विश्वास में कमी नहीं होने पाती और वह संगठन सुदृढ़ स्थिति में कायम बना रहता है। जब तक यह संगठन कायम रहता है तब तक धन-धान्य की भी कमी नहीं रहती और बाहरी लोगों के आक्रमण भी सफल नहीं होते। इसीलिये इस भावना को पवित्र दैवी तत्व माना गया है। पितरों को पूजने की प्रथा बड़ों के प्रति आस्था का ही चिन्ह है।

सम्मान के पीछे मूल भावना जितनी पवित्र होगी उतना ही वह अधिक उपादेय होगा और जिसके प्रति सम्मान प्रकट किया गया है उनके हृदय से “आशीर्वाद” की बहुत-सी मात्रा खींच लाने वाला होगा। लोक व्यवहार और दिखाने के लिये प्रदर्शित सम्मान से आत्मिक अभिव्यक्ति नहीं होती और वह एक संकीर्ण विचार मात्र रहकर अपने आप में ही सिमटकर रह जाता है। सम्मान की परम्परा का प्रारम्भ आत्म विकास की मूल प्रेरणा को लेकर होता है इसलिये वह निष्काम तथा निर्लोभ होना चाहिये। वहाँ पर अहंकार, लोभ आदि आसुरी वृत्तियों का प्रादुर्भाव न होना चाहिये। इसे एक रूढ़ि मात्र भी बनकर न रह जाना चाहिये। वरन् इस भावना को अन्तरात्मा के स्पर्श की सुखानुभूति होने देनी चाहिये ताकि सम्मान आध्यात्मिक प्रशस्ति का ही साधन बना रह सके। और उन्होंने उसके गुड़ भी बताय जैसे की चीजो को सम्लित तरीके से समझाया की

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समाज में अपने गुरु व् किसी को सम्मान देना बड़ी बात राकेश कुमार सेंट जोजेफ स्कूल Reviewed by Ravindra Nagar on February 03, 2018 Rating: 5

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