प्राइवेट बिल्डर को करोड़ों का मुआवजा बांटने पर फंसी यूपी सरकार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लखनऊ में स्थित एक नजूल की जमीन के एवज में अफसरों द्वारा मिलीभगत करके उसका करोड़ों का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को दिला देने के प्रथम दृष्टया आरेापोंं पर संज्ञान लेते हुए सरकार को पूरे मामले की जांच करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव राजस्व को आदेश देते हुए कहा कि वह इस मामले की जांच विजिलेंस विभाग से कराएं और जांच रिपोर्ट तीन माह में पेश करें। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जांच में उन अधिकारियों की संलिप्तता का पता लगाया जाए जिन्होंने सरकार की ही जमीन का अधिग्रहण करवा दिया और एक बड़ी धनराशि मुआवजे के नाम पर बांट दी। मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च को होगी।
यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने सैयद मोहम्मद हुसैन की याचिका पर सुनवाई के दौरान सम्बंधित तथ्यों पर स्वत: लेते हुए पारित किया। याचिका पर सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि लखनऊ के रामतीर्थ रोड पर गाटा संख्या-57 की जमीन को अधिग्रहित करने की कार्यवाही वर्ष 1999-2000 में शुरू की गई। यह जमीन एक नजूल लैंड थी जिसका क्षेत्रफल 86 हजार 483 वर्गफुट था। इस जमीन को अधिग्रहित करने के बदले में ढाई करोड़ का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को 30 अप्रैल, 2005 को दे दिया गया।
कोर्ट ने पाया कि स्पष्ट नियम है कि राज्य सरकार नजूल लैंड का अधिग्रहण नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि सरकार अपनी ही जमीनों के लिए न तो अधिग्रहण प्रक्रिया कर सकती है और न ही इसके लिए किसी को मुआवजा दे सकती है। नजूल लैंड के लिए एक प्राइवेट पार्टी को मुआवजा देकर राज्य सरकार और इसके विकास प्राधिकरण ने गैर कानूनी कार्य किया है। सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि प्राइवेट बिल्डर को लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी की अनुमति से ट्रांसफर की गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि नजूल की जमीन को ट्रांसफर करने का अधिकार विकास प्राधिकरण को नहीं है, यह सिर्फ सरकार या कलेक्टर कर सकता है।
प्राइवेट बिल्डर को करोड़ों का मुआवजा बांटने पर फंसी यूपी सरकार
Reviewed by Ravindra Nagar
on
January 10, 2018
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