उत्तर प्रदेश शासन में तो पुलिसकर्मियों को छुट्टी देने की मंशा ही नहीं
Dhanaoura times news lucknow
उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों को छुट्टी न मिल पाना और 12 घंटों से भी अधिक ड्यूटी का सच बेहद कड़वा है। पुलिस के अफसरों के लिए भले ही अधीनस्थों का यह दर्द मायने नहीं रखता हो, लेकिन पुलिसकर्मियों का खराब व्यवहार उनकी कुंठाओं का नतीजा है। पुलिस विभाग में साप्ताहिक अवकाश पर किया गया प्रयोग इसे साबित भी कर चुका है। शासन ने पुलिसकर्मियों को दस दिन में एक दिन का अवकाश दिए जाने का निर्देश दिया था, लेकिन जिले में बैठ पुलिस अधिकारियों की कमजोर इच्छाशक्ति ने उसे कागजों में ही समेटकर रख दिया। लंबी ड्यूटी, समय पर छुट्टी न मिलना और ड्यूटी का कोई शेड्यूल न होने से तंग मेरठ में तैनात दारोगा अजीत सिंह (2011 बैच) के एसएसपी को अपना त्यागपत्र सौंपने के प्रकरण ने फिर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
राजधानी में वर्ष 2013 में तत्कालीन डीआइजी लखनऊ रेंज नवनीत सिकेरा (अब आइजी 1090) ने गोमतीनगर थाने में सिपाही से लेकर उपनिरीक्षक तक पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने का पायलेट प्रोजेक्ट चलाया था। इसके बेहतर परिणाम आए थे। इसके बाद ही शासन की अनुमति पर तत्कालीन डीजीपी ने पुलिसकर्मियों की लगातार लंबी ड्यूटी के दृष्टिगत उन्हें विश्राम दिए जाने के लिए प्रत्येक दस दिन में एक दिन का अवकाश देने का निर्देश दिया था, लेकिन जिला स्तर पर पुलिस बल की कमी का हवाला देकर अधिकारियों ने इस मंशा को पूरा ही नहीं होने दिया।
राजधानी में वर्ष 2013 में तत्कालीन डीआइजी लखनऊ रेंज नवनीत सिकेरा (अब आइजी 1090) ने गोमतीनगर थाने में सिपाही से लेकर उपनिरीक्षक तक पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने का पायलेट प्रोजेक्ट चलाया था। इसके बेहतर परिणाम आए थे। इसके बाद ही शासन की अनुमति पर तत्कालीन डीजीपी ने पुलिसकर्मियों की लगातार लंबी ड्यूटी के दृष्टिगत उन्हें विश्राम दिए जाने के लिए प्रत्येक दस दिन में एक दिन का अवकाश देने का निर्देश दिया था, लेकिन जिला स्तर पर पुलिस बल की कमी का हवाला देकर अधिकारियों ने इस मंशा को पूरा ही नहीं होने दिया।
आइआइएम, लखनऊ के प्रोफेसर हिमांशु राय बताते हैं कि पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने को लेकर स्टडी की गई थी। प्रयोग पर आधारित शोध के तहत एक थाने को कंट्रोल गु्रप माना गया था जबकि दूसरे थाने में प्रयोग के तौर पर सिपाही से लेकर दारोगा तक के पुलिसकर्मियों को छह माह तक साप्ताहिक अवकाश की सुविधा दी गई। प्रयोग शुरू होने से पहले दोनों ही थानों के पुलिसकर्मियों का जॉब सैटिसफैक्शन, कमिटमेंट फॉर फोर्स, फैमिली बैलेंस व प्रोडक्टीविटी के प्वाइंट पर मेजरमेंट लिये गए। शोध के बाद दोबारा इन्हीं बिंदुओं पर दोबारा जानकारी हासिल करने पर बड़ा बदलाव सामने आया। साप्ताहिक अवकाश पाने वाले पुलिसकर्मियों में 70 से 90 फीसद तक सुधार सामने आया।
डीजीपी सुलखान सिंह का कहना है कि पुलिसकर्मियों को विश्राम देने के लिहाज से उन्होंने पूर्व में दिए गए आदेश को दोबारा जारी कराया है। साथ ही थानों पर एसओ व पुलिस लाइन में आरआइ के द्वारा ही पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाने का आदेश दिया है। लापरवाही के चलते अनुपालन नहीं हो पा रहा है।
अन्य सरकारी कर्मचारियों की अपेक्षा पुलिसकर्मियों को वर्ष में महज 60 छुट्टियां मिलती हैं। इनमें 30 सीएल (कैजुअल लीव) व 30 ईएल (अर्न लीव) शामिल हैं जबकि उन्हें 12 घंटे अथवा उससे अधिक की ड्यूटी करनी पड़ती है। इन छुट्टियों को भी पुलिसकर्मी पूरा हासिल नहीं कर पाते।
आइजी नवनीत सिकेरा का कहना है कि उप्र पुलिस की मेहनत में कमी नहीं है। पुलिसकर्मियों के व्यवहार से समस्या होती है। उनसे दिल्ली व मुंबई की तरह आठ घंटे ड्यूटी लिए जाने के साथ ही सप्ताह में एक छुट्टी दी जानी चाहिए।
उत्तर प्रदेश शासन में तो पुलिसकर्मियों को छुट्टी देने की मंशा ही नहीं
Reviewed by Ravindra Nagar
on
December 29, 2017
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