बरेली में भूख से मजदूर की मौत, दो दिन से नहीं मिला था खाना
Dhanaoura times news
गरीब व मजदूरों के हितों की रक्षा करने का सरकार का दावा सच नहीं है। गरीबों को एक वक्त की रोटी भी नहीं मिल रही है। जून उत्तर प्रदेश में गरीबों पर भूख कहर बनकर टूट रही है। बरेली में दो दिन से भूखे मजदूर 42 वर्षीय नेमचंद्र ने कल अपनी 90 वर्ष की मां की गोद में दम तोड़ दिया। नेमचंद्र नाईगिरी और मजदूरी कर अपना व मां का पेट भरते थे।
प्रशासन गरीबों को पेट भर खाना, रहने के लिए छत, ठंड से बचाव के लिए कंबल बांटने के दावे ही करता रह गया और एक मजदूर को मौत निगल गई। तीन दिन से उसके पेट में एक निवाला नहीं गया। बंद कमरे में वह मौत से जूझता रहा मगर पार नहीं पा सका। गांव वालों ने जब कमरे में झांका तो अंदर शव ठंड से अकड़ा पड़ा था।
गरीब की भूख से मौत की सूचना पर एसडीएम, तहसीलदार, लेखपाल और विधायक प्रतिनिधि पहुंचे। उसका कमरा हालात बयां कर रहा था, वहां न दाल थी, न चावल थे। एक थैली में बमुश्किल डेढ़ किलो आटा रखा हुआ था। 1भमोरा मुख्य मार्ग से करीब साढ़े तीन किलोमीटर भीतर स्थित गांव कुड़रिया इकलासपुर निवासी नेमचंद्र आठ भाइयों में सबसे छोटे थे। चार अन्य भाइयों की पहले ही बीमारी और हादसों में मौत हो चुकी है। जबकि दो भाई शहर के सुभाषनगर में और एक दिल्ली में रहकर मजदूरी करते हैं। अविवाहित नेमचंद्र गांव में 85 साल की बूढ़ी मां खिल्लो देवी के साथ गांव के कच्चे पुश्तैनी घर में रहते थे।
बरेली में भूख से मौत का मामला सामने आते ही प्रशासन में खलबली मच गई। तहसीलदार और लेखपाल तत्काल नेमचंद्र के घर पहुंचे। वहां पर लेखपाल ने माना नेमचंद्र के घर की स्थिति दयनीय थी। 90 वर्ष की बूढ़ी मां के साथ वह झोपड़ी में रहता था, उसके घर में एक भी दाना न मिलने से गरीबों को मुफ्त में राशन देने का दावा की हकीकत सामने आ गई। मामला भमोरा थाना क्षेत्र के गांव कुड़रिया इखलासपुर का है।
भूख है तो सब्र कर, रोटी नही तो क्या हुआ आजकल दिल्ली में है जेरे बहस ये मुद्दा, किसी शायर की ये पंक्ति देश के हालात को ज्यों का त्यों बयां करती हैं। यूपी के बरेली में भूख की वजह से एक 42 वर्षीय नेमचंद्र की मौत हो गई है, जिसने प्रशासन की पोल खोलकर रख दी। खबरों के मुताबिक पिछले तीन दिनों से घर में खाना नहीं बना था। भूख के कारण उसकी मौत हो गई है जबकि बुजुर्ग मां का रो-रोकर बुरा हाल है। मृतक नेमचंद्र की मां और रिश्तेदारों का कहना है कि घर में खाने को कुछ भी नहीं है। गांव वालों और रिश्तेदार घर पर कभी-कभी खाना भेज दिया करते थे, जिससे उनका गुजारा हो जाता था।
बूढ़ी मां का कहना है की राशन कार्ड बना है और राशन भी मिला है, लेकिन बेटे को फालिज का अटैक पडऩे की वजह से राशन बेचकर उसकी दवा ले आई थी। तीन दिनों से घर में खाना नहीं बना था।
भूख से मौत की खबर मीडिया में आने के बाद लेखपाल शिवा कुशवाहा भी मौके पर पहुंची और मामले की जांच की। लेखपाल का कहना है कि नेमचंद्र के परिवार की हालत काफी दयनीय है। घर में खाने को भी कुछ नहीं है। मामले की जांच की जा रही है कि उनकी मौत भूख से हुई है या बीमारी से।
कुछ महीने पहले फतेहगंज पश्चिमी में भी एक महिला की भूख से मौत हो गई थी और अब एक बार फिर भूख से मौत का मामला सामने आने से सरकार और प्रशासन कटघरे में है।
बरेली में भूख से मजदूर की मौत, दो दिन से नहीं मिला था खाना
Reviewed by Ravindra Nagar
on
January 05, 2018
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